अभिनय ??
न तो !!
कभी सीखा नही मैंने
पर हर रोज़ इसकी जरूरत
महसूस होती है
सबके साथ
क्या घरवाले क्या बाहर वाले
कभी कभी तो खुद के साथ भी,
चाहती कुछ हूँ
करती कुछ हूँ और
बोलती कुछ हूँ
कई बार मन बिल्कुल
नहीं मानना चाहता
आये दिन के समझौतों को,
पर उसका तो कत्ल
मैंने बहुत पहले ही कर दिया है न
अब तो वो बस दफ़न पड़ा है
मेरे शरीर में
और इसलिए
दख़ल नही दे पाता
किसी भी मेरे फैसलों में ,
लेकिन .....
उम्र के इस पड़ाव पर
थक सी गयी हूँ
अभिनय करते करते
अब तो
मुझे मुझ सी ही रहना है
तुम्हे तुम्हें तुम्हें मैं
पसंद हूँ तो ठीक नहीं हूँ
तो कोई बात नहीं
कम से कम मेरा मन
अब गहरी नींद से जाग
ज़िन्दा तो हो सकेगा
और तब ज़िन्दा महसूस
करुँगी मैं भी !!!