प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसके बोलते ही कितनी हलचल मच जाती है। किसी को बॉलीवुड की फिल्म याद आ जाती है तो किसी को कोई रोमांटिक गीत याद आ जाता है। किसी को अपना पहला-पहला प्यार याद आ जाता है तो किसी को टूटा दिल या बेवफ़ाई याद आ जाती है। किसी को अत्ताउल्ला खाँ साहब का गाना- 'मेरा दर्द तुम न समझ सके...' याद आ जाता है तो कोई बिरह के बारे में सोचकर नुसरत साहब का गाया गाना- 'सानु इक पल चैन न आवे...' गाने लगता है। कहने का मतलब यह है कि यह शब्द खाली रहने नहीं देता। यह ऐसा विषय भी है जिस पर बोलने या लिखने से बचती रही हूँ। पर आज मैं लिखूँगी कि मैं किन किन लोगों की प्रेम दीवानी रही हूँ। हम जैसी बात बात पर शर्मा जाने वाली लड़कियों के अपने ढेरों कोने होते हैं। हमारे मन में बहुत से लोग ऐसे गुपचुप रहते हैं जिन्हें हम दुनिया की बुरी नज़र से छुपा कर रखना चाहते हैं। पहले पहल मुझे यह लगता था कि किसी को प्यार करना बदनाम हो जाने वाली वजह बन जाती है। पर अब यह अंधविश्वास टूट रहे हैं। मुझे खुद को मुबारक हो कहना धीरे-धीरे आ रहा है। प्रेम पूर्वाग्रहों से संचालित नहीं होता। इस बात का संतोष और खुशी दोनों है।
सन् 1972 में हिन्दी की दुनिया को एक बेहतरीन उपन्यास मिला था। उसका नाम है- 'धरती धन न अपना'। इसके लेखक जगदीश चंद्र हैं। जब मैं इग्नू से अपने एम.ए. हिन्दी की पढ़ाई कर रही थी तब यह उपन्यास कोर्स में लगा था। अधिक समय नहीं हुआ इस बात को। क्योंकि मेरा पूरा समय अपनी नौकरी में गुज़र जाता था इसलिए उपन्यासों को खरीदने की ज़िम्मेदारी मेरे पिता के जिम्मे हो गई थी। वे ही पुरानी दिल्ली के नई सड़क पर लगने वाले बाज़ार से मेरे लिए उन किताबों को खोज खोज कर लाये थे। मैंने उन्हें सभी उपन्यासों की फेहरिश्त दी थी और वे एक ही बार में कम से कम आठ उपन्यास खरीदकर ले आए थे। शाम को जब मैं घर पहुंची तब नई-नई किताबों को देखकर एक खुशी अंदर मिनट में पैदा हो गई। मैंने किताबों को देखते हुए कहा- 'ये तो सारी नई लग रही हैं!' वे बोले- 'हाँ, नई ही हैं। कला मंदिर नामक दुकान से लाया हूँ।' इतनी देर में मैंने कुछ उपन्यासों को उलट पलट कर देख लिया। वो बोले- 'तुम्हें काफी मेहनत करनी होगी।' मैंने किताबों पर हाथ फेरते हुए कहा- 'सो तो है।...पापा आप को कौन सी किताब अच्छी लग रही है?' वो आठों किताबों पर नज़र फेरने के बाद एक किताब मेरे आगे करते हुए बोले- 'ये वाली!' जब मैंने उस किताब को हाथ में लिया तो वह यही उपन्यास निकला- 'धरती धन न अपना'।
लेकिन मैंने इस किताब को पहले नहीं पढ़ा। इससे पहले मैंने 'गोदान' को और इसके बाद 'सूखा बरगद' पढ़ा। दोनों ठीक-ठाक थे। इस उपन्यास की बारी तीसरी रही और पढ़ने के बाद अफसोस हुआ कि यह पहले क्यों नहीं पढ़ा। वास्तव में यह उपन्यास दिल में उतर जाने वाला लगा। लिखने की शैली ऐसी थी कि पाठक को एक पल को लगता है कि वह 'चमादड़ी' में ही पहुँच गया है। सभी किताब अपने महत्व को पारित ही करती हैं। खैर इस उपन्यास के चरित्रों 'काली और ज्ञानो' का प्रेम मुझे आज तक सुपर डुपर प्रेम लगता है। ज्ञानो का मरना मुझे एक झटके जैसा लगा था। हमारा खुद का समाज ही प्रेम की स्थापना नहीं करने देता। खैर इस उपन्यास की कहानी नहीं बताना चाहती। लोग खुद से पढ़ें तो अच्छा रहेगा। इस उपन्यास को पढ़कर प्रेम का तरल मेरे मन में बह निकला था। इसके बाद निर्मल वर्मा द्वारा अनूदित कृति- रोमियो और जूलिएट अंधेरे में' पढ़ी थी और फिर प्रेम को महसूस किया था। फिर तो कुछ मशहूर उपन्यासों को जब भी मौक़ा मिला मैंने उन्हें पढ़ने की कोशिश की। इस फेहरिश्त में जेन एयर, गॉन विद द विंड, एकांत के सौ वर्ष, संन्स एंड लवर्स, प्राइड एंड प्रजुडिस, अन्ना कारेनिना आदि जुड़ ही रहे हैं। प्रेम के तमाम तरह के रूपों से मुखातिब होना बेहद बढ़िया तजुर्बा है। किसी को अगर पढ़ने की ज़रा सी भी इच्छा है तब तो संसार की महान साहित्यिक रचनाओं को पढ़कर प्रेम को महसूस किया जा सकता है। प्रेम तो यूनिवर्सल अनुभूति है। लेकिन बात तो प्रेम पर होगी और आकर्षण पर। एक आम लड़की लड़के के जीवन में अलग अलग उम्र में प्रेम की दस्तकों को समझना बहुत बढ़िया है।
इस किताबी प्रेम-कहानी से पहले लड़कियों के जीवन में प्रेम कहाँ-कहाँ से प्रवेश करता है यह देखना बड़ा दिलचस्प होता है। मुझे नहीं मालूम की बड़े घर की बेटी का जीवन कैसा होता है? पर अपने जैसे घर की लड़की के बारे में कह सकती हूँ कि इनकी रोज़मर्रा बहुत उथल-पुथल वाली होती है। आज भी तकनीक के आ जाने से कुछ खास बदलाव नहीं आया है। तेरह या चौदह बरस की उम्र में छाती को ढकने वाला दुपट्टा रिशतेदारों से तोहफे में मिलना शुरू हो जाता है। स्कूल की ड्रेस या तो लंबी हो जाती है या फिर वह सीधे सूट में तब्दील हो जाती है। बालों की चमक तैल में चुपड़े हुए बालों में बदल जाती है। और कसकर दो चोटियाँ बना दी जाती हैं कि बालों का दम घुटने लग जाता है। फिर भी आकर्षण, हिंदुओं की किताब में दिये गए आत्मा के गुण को धारण कर उस सूट सलवार वाली लड़की के जीवन में आ ही जाता है। यही खास खासियत भी है। आकर्षण की महक बड़ी ही भीनी भीनी होती है।
स्कूल के आने जाने के रास्ते कम मोहक नहीं होते! कुछ छोटी उम्र की कहानियाँ वहाँ जन्म ले लेती हैं। कोई लड़का है अजनबी सा जो साथ जाने की ज़िद्द करता है। सुबह 7:30 के समय में वह लंबी वाली सड़क के एक कोने में मोशन में खड़ा है। वह चाहता है कि यह सूट वाली लड़की आए तो साथ रास्ता कट जाये। लड़की अंजान बनी हुई भी सब जानती है। धीरे धीरे जान पहचान मुस्कुराहटों से हो ही जाती है। आह! क्या अहसास है। वह कम उम्र का लड़का अब प्रेमी है और वह लड़की प्रेमिका। कितना केयरिंग नेचर है उस लड़के का। इतना अच्छा अहसास। लड़की को उसका जन्मदिन याद है। वह कुछ ऐसा सामान जो तोहफा हो, देना चाहती है कि वह लड़का अपने साथ उसकी निशानी बनाकर रख सके। वह क्या दे सकती है, सोचने में कई रातें जाग कर बिता देती है। पिछले हफ्ते पिता ने एक बात कही थी कि इंसान को एक घड़ी का साथ रखना चाहिए। उसे यहीं से तोहफे के बारे में इशारा मिल गया। बचे हुए रुपयों से उसने चोरी चुपके एक काले पट्टे वाली घड़ी खरीद ली। उसका खयाल था कि इससे अच्छा तोहफा कुछ हो नहीं सकता। उसने दिया। लड़का हैरानी और प्यार के मिले जुले भाव से घड़ी देखता रह गया। शायद उसकी आँखों में आँसू भी तैर गए थे। उसने उस पल सोचा- 'क्या लड़कियां ऐसी होती हैं!' उसने उस लड़की जिसको वह अब प्यार करने लगा है, को भी एक तोहफा खरीदने की बात सोचनी शुरू की। लेकिन जब तक शोर मच गया। बस एक बात जो आसपास होती रही, वह थी- 'लड़की का चक्कर चल रहा है, लड़की का चक्कर चल रहा है!
एक वो वाला प्यार भी होता है जो ट्यूशन में होता है। वहाँ स्कूल ड्रेस या दो चोटियों की ज़िद्द नहीं होती। वहाँ बहाने से छू भी सकते हैं। बात भी हो सकती है। नज़रें भी मिल सकती हैं। यहाँ भी लड़की का दिल अभी सीने से बाहर आने को हुआ होता है। a+b का स्क्व्यर वाला सूत्र कितना अच्छा लगने लगता है। टेस्ट होगा मैथ्स का। एक सवाल गलत नहीं होना चाहिए। टेस्ट का दिन आया। कुल छ सवाल दिये गए। सब अकेले अकेले बैठेंगे। कोई किसी का नहीं देखेगा। लेकिन ये जो आकर्षण है, यह सब कुछ देखता और समझता है। मुंह में केडबरी चॉकलेट की तरह घुल जाता है। लड़के ने लड़की को जितना हो सका दिखाया। दोनों टेस्ट में पास हो गए। अभी तक आकर्षण की भनक किसी बड़ी नज़र को नहीं लगी। यहाँ अभी कोई बदनाम नहीं हुआ है। अच्छा है। सब ठीक ठाक है।
एक मैगज़ीन वाला प्यार भी होता है। बड़ी होती लड़कियों की जानकारी देने वाली पत्रिका। इसके अलावा वहाँ 'पहला प्यार' वाला किस्सा भी होता है। कितना अच्छा लगता है इस पेज़ को छूकर। आत्मा तृप्त होती है। अगर उस लड़की को अपने पहले प्यार के बारे में कुछ लिखना होता तो क्या लिखेगी?... वह सोच रही है। किससे प्यार हुआ है उसे? कोई क्लास का लड़का भी नहीं है, क्योंकि कॉलेज ही लड़कियों वाला है। ट्यूशन है नहीं तो कहाँ और किस्से प्यार होगा? चान्स ही नहीं। मौका है कहाँ! फिर कॉमिक्स के हीरो से। कौन अच्छा लगता है? फिलहाल तो सुपरमैन! अरे वही जो पेंट के ऊपर चड्डी पहनता है, वो भी लाल रंग वाली। कुछ भी कहो अच्छा तो लगता ही है। क्रिप्टन से आया है। अपनी धरती का मुसाफिर नहीं है। चक्कर चला तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। हाँ, यह अच्छा वाला विकल्प है। कोई पूछेगा तो कह दूँगी कि है मेरा भी कोई। यहाँ का रहने वाला नहीं है... नहीं यह बताने की ज़रूरत नहीं है। है बस कोई, इतना काफी है।
दूसरी तरफ उस बेचारे सुपरमैन को नहीं मालूम कि कितनी लड़कियों का वह प्रेमी है। कितने प्रेम पत्रों की वह वजह है। कितनी आँखों के गुलाबी हो जाने का वह कारण है। कितनी सारी डायरियों के पन्नो में वह चिपका हुआ उड़ रहा है, कहीं न जाने के लिए। यह डायरी वही खजाना है जिसके ऊपर सूरज की रोशनी नहीं पड़ा करती। जिसके बारे में कोई भी 'कैप्टन जैक स्पेरॉ' नहीं जानता। वह खोज नहीं सकता इस खजाने को। आज भी ऐसे खजाने रोज़ अहसासों की ज़मीन में छुपाए जा रहे हैं। अच्छा है। यह दुनिया खजाना रहित नहीं होगी। खोजने के लिए कुछ न भी रहा तो कम से कम ये अहसास तो रहेंगे ही न।
ठीक ऐसे ही कई तरह के प्रेम हर पल हर दिल में सांस ले रहे हैं। और इसी की वजह से धरती जीवंत है।