लोग कहते हैं एक परिवार का होना बेहद जरुरी होता है| ताकि दुःख के घड़ी में कोई तो अपना हो जो साथ हो| परिवार बनाने के लिए लोग शादी करते हैं| अपना जीवनसाथी चुनते है| जीवनसाथी अर्थात् जीवन भर का साथी| मतलब जब तक आप है, तब तक आपका साथी है और जब तक आपका साथी है तब तक आप| पर ये शायद हीं कभी होता है| जीवन भर साथ निभाने का वादा टूट हीं जाता है|
नारायण ने अपनी महिला मित्र को अपनी जीवन संगिनी बनाया| जीवन भर साथ निभाने का वादा किया| दोनों के बच्चे हुए एक बेटा आदित्य और बेटी अक्षिता| दोनों बड़े हुए और अपने जीवन तथा परिवार में रच-बस गए| सामान्यत: यही देखा भी जाता है| बच्चेअपने जीवन को संवारने में लग जाते हैं और यदा – कदा अपने माता-पिता को भी मिल लेते हैं| आदित्य और अक्षिता ने भी यही किया|
जीवन के 48 वसंत साथ देख चुके नारायण और उनकी जीवन संगिनी संगीता कि सेहत अब ठीक नहीं रहती थी| संगीता की हमेशा ये डर सताने लगा था, कि कहीं मैं आपका साथ बीच जीवन में छोड़ कर यूँ ही नहीं चली जाऊ| “मैंने आपके साथ हीं जीने की कसम खाई है”| नारायण भी अपनी जीवन संगिनी को यूँ देखकर दु:खित होते थे, कि जब हम जीवन साथी बने हैं तो जीवन भर का साथ होना ही चाहिए| किसी को भी इस वायदे को तोड़कर नहीं जाना चाहिए|
उस दिन नारायण की जीवन संगिनी संगीता की तबीयत अचानक बिगड़ गई| आनन-फानन में अस्पताल में भरती कराया गया| डॉक्टर भी भगवान पर भरोसा रखने के लिए कह रहे थे| संगीता की तबीयत जब थोड़ी सुधरी तो उन्होंने नारायण से मिलने की इच्छा जताई| उन दोनों ने अपने जीवन के उन दिनों को याद किया कि कैसे,वे “विरासत” फिल्म के “जीवनसाथी हम दीया और बाती हम” , गाने में एक दूसरे को दीया और बाती बताते थे कि दोनों एक दूसरे के बिना अधुरे हैं| रात न जाने कब बीत गई और वे दोनों एक दूसरे का हाथ थामें इस लोक को छोड़ कर अब उस लोक में एक दूसरेका साथ देने चले गये थे|